Jhansi Ki Raani Bio: खुब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी, ये शब्द हमे हमारे देश कि सबसे बडी विरांगना कि याद दिलाती है जिन्होने देश कि आजादी के लिए अपना सबकुछ भुला दिया और पुरे देश मे आजादी कि आग भडकाई थी। हम सभी ने इनके बारे मे अपने स्कुल के किताबो मे पढा होगा और इनके उपलब्धियों के बारे मे भी सुना होगा और साथ मे इनके त्याग के बारे मे भी पडा होगा, रानी लक्ष्मी बाई से लेकर झांसी की रानी बनने तक कि कहानी बेहद ही प्रेरणादायक और हमे इस बात से पता चलता है कि आजादी कि कीमत क्या होती है।
आज इस आर्टिकल मे आप जानेंगे झांसी की रानी के बारे मे
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झांसी की रानी जीवन परिचय | Jhansi Ki Raani Bio in Hindi
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1928 को आज के बनारस और तब का वाराणसी मे एक मराठा परिवार मे हुआ था, इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था और माता का नाम भागीरथीबाई था। इनके पिता मोरोपंत तांबे मराठा बाजीराव के सेवा मे लगे हुए थे और इनकी माता सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी, रानी लक्षमीबाई का बचपन मे मणिकर्णिका था और बचपन मे ही इनकि मां का देहांत हो गया। मोरोपंत का घर पर कोई नही था इस छोटी बच्ची का ख्याल रखने के लिए इसलिए मोरोपंत मणिकर्णिका को साथ मे बाजीराव के व्दितीय के दरबार मे लेकर जाने लगे।
मणिकर्णिका ने बचपन मे शस्त्र और शास्त्र दोनो शिक्षा पुरी तरह से अर्जित कर ली, बचपन मे मणिकर्णिका मे एक विरो वाले खुबियां दिखने लगी थी और ये बात उन्होने कई बार साबित भी किया था। साल 1942 मे उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वो झाँसी की रानी बन गयी। विवाह के बाद मणिकर्णिका से उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया और साल 1851 मे रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन चार महीने की दरमियां में ही उस बच्चे की मृत्यु हो गयी और रानी के लिए बहुत ही दुखदायक था।
साल 1853 मे राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ गया पर राज्य को एक पालक कि जरुरत थी और राजा पहले पुत्र के मर जाने के बाद राजा को दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। राजा ने ऐसा ही किया और क बच्चे को गोद ले लिया, पुत्र को गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। गोद लिये गये पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया और राजा के मर जाने के बाद रानी कि जीवन मे संघर्ष और बढ गया था क्योकि तब देश मे अंग्रेज पान पैर पसार रहे थे और जिस राज्य का राजा मर जाता था और उसका कोई अपनी वारीश नही होता है तो उस राज्य पर अंग्रेजो का कब्जा हो जाता है। अंग्रेजो के नियम के अनुसार राज्य का वारीस ना होने के स्थिति पर गोद लिये गये बच्चे को गद्दी का वारीस नही बना सकते है और यहीं से रानी लक्ष्मीबाई कि झंसी कि रानी बनने कि शुरुआत हुयी थी।
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इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई कि खुद कि लडाई अब देश कि आबरु बन चुकि थी, झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया।
परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली। जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी।
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मणिकर्णिका से लेकर रानी लक्ष्मीबाई और फिर झांसी की रानी बनने तक की कहानी लोगो के लिए प्रेरणा है और हम भारतीयो को इस बात का पता चलता है कि आजादी के लिए कुर्बानी देनी होती है और आज हमारी आजादी कि वजह इन्ही जैसी विरो के वजह से।